Wednesday, May 19, 2010

क्या नक्सलवाद के लिए मिडिया जिम्मेदार नहीं ? सोचिये !!

आज मै लिखना चाहता हूँ मिडिया और नक्सलवाद के परस्पर सम्बन्ध पर, ऐसा क्यों होता है की मिडिया के माध्यम से हमारी सरकार के द्वारा नक्सलियों के खिलाफ किये जाने वाके समस्त कार्यवाहियों की जानकारी नक्सलियों तक तो जरुर पहुच जाती है मगर वाही मिडिया वाले जो हमारी खबर नक्क्सलियों तक पहुंचाते हैं वे क्यों उनकी स्थिति और उनके सम्बन्ध में अन्य जानकारियां सरकार को या आमजनों को नहीं देते हैं ??
क्या ऐसा करके मिडिया वाले ये बताना चाहते हैं की उनकी पकड़ नक्सलियों तक भी है या वे ये बताना चाहते है की जिस नक्सली प्रभावित जगहों में पुलिस नहीं पहुँच सकती वहां हम मिडिया वाले पहुँच सकते हैं !! आखिर साबित क्या करना चाहते हैं हैं ये मिडिया वाले नक्सली का interview दिखाकर ? क्या वे ऐसा करके कहीं न कहीं उनका हौसला बढाकर या उनकी बातों को समूचे देश में प्रसारित कर वे उन्हें प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं ??
मुझे यह कहने में किसिस प्रकार का कोई संकोच नहीं है की इस मामले में मिडिया का भी उतना ही उत्तरदायित्व है जितना सरकार और अन्य सभी प्रसासनिक अम्लों का है !! मगर आज मिडिया के लोग गाहे बगाहे मिडिया के समर्थक बनते जा रहे हैं , हाँ जो मिडिया नक्सलियों के निति और उनके बातों को समूचे देश में प्रसारित कर रहा है वह निश्चित ही नक्सल समर्थक है !! क्या मिडिया की यही जिम्मेदारी है? क्या देश के चौथे स्तम्भ की यही जिम्मेदारी है ?
मै यह भी बताने में संकोच नहीं करूँगा की जब दंतेवाडा में 70 से अधिक जवान मरे गए और अभी हाल में ही जब पुनः नक्सलियों ने बस को उड़ा दिया ऐसे अवसर पर भी तथाकथित रास्ट्रीय न्यूज़ चैनलों द्वारा इन ख़बरों को महत्व न देकर अन्य फालतू ख़बरों को ही प्रसारित किया जाता रहा , खबरों में सिर्फ महानगरों की चोरी , अभिनेताओं के नखरे , खेल जगत में भारत की नाकामी को ही दिखाया जाता रहा , क्या हमारे जवान ओं का मारा जाना कोई खबर नहीं ? क्या हमारे पचास से भी अधिक लोगों का मारा भी जाना कोई खबर नहीं ? आखिर क्यों मिडिया वाले इन ख़बरों की उपेक्छा कर अनावश्यक खबर दीखते हैं ? क्या उनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना ही रह गया है , देश की सेवा नहीं ?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कहीं न कहीं मिडिया के नकारात्मक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं , आज समय आ गया है की अब मिडिया की स्वतंत्रता पर सकारात्मक अंकुश लगाया जाये ताकि देश में देशहित से जुड़े आवश्यक खबर ही प्रसारित हो किसी आतंकी का interviwe नहीं , और ऐसे खबर प्रसारित हों जिससे लोगों को देशभक्त बनने की प्रेरणा मिले आतंकवादी या नक्सली बनने की नहीं , मै देश के कर्णधारों से अपील करता हूँ की ये अब वोटों की राजनीती और मिडिया के दुरूपयोग को बंद कर देश को सकारात्मक दिशा प्रदान करें , अंत में मै सभी मरे जाने वालों को अपनी ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ...............

3 comments:

  1. bhaiya aapne bilkul thik kaha aajkal midia wale kisi bhi khabar ko dikhane se pahle sochte bhi nahi ki dikhana chahiye ya nahi ,aise me unpar ankush lagana aavashyak ho gaya hai ....

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  2. is baar netaji ke vichar bilkul sahi hain ....... midia par ankush jaruri hai .....

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  3. नमस्कार गौरव जी,
    मीडिया के खिलाफ आपका आक्रोश पढ़ा.
    हाँ, कभी कभी मीडिया, विशेष कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया का रवैया गैरजिम्मेदाराना महसूस होने लगता है. लेकिन मीडिया और नक्सलवाद को पारस्परिक रूप से सम्बंधित बताना कुछ ज्यादा ही कठोर एवं असंयमित प्रतिक्रिया और एक ऐसा आक्षेपन प्रतीत होता है जिसका पुख्ता आधार अनुपस्थित है. गौरव, जनसंकल्प का निर्माण एक बहुत धीमी एवं सतत प्रक्रिया के तहत होता है और क्या आपको यह नहीं लगता की आज नक्सलवाद के विरुद्ध आम जन विशेष रूप से हमारी युवा पीढ़ी अपना आक्रोश प्रकट कर पा रही है तो यह मीडिया के काफी तवील कोशिशों का नतीजा है? एक समयवह भी था जब आम जन तक खबर भी न पहुँच पाती थी, और आज हमें पूरी दुनिया की पल पल की खबर होती है. हम अपनी राय दर्ज करा पाते हैं. कहने का अर्थ यह की मीडिया के प्रसारणों से हम वैचारिक रूप से सशक्त तो होते ही हैं और बहूत संभव है की कालान्तर में यही सशक्तिकरण जनक्रांति का शंखनाद बन जाए. इसीलिए मेरा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है की यदि मीडिया किसी नक्सली प्रतिनिधि का साक्षात्कार टेलीकास्ट करता है तो वह एक प्रकार से प्रशाशन की मदद ही कर रहा है. हाँ मीडिया यदि उन तक पहुँच रखती है तो भारत के कोटि कोटि जनता की तरफ से यह प्रश्न जरूर उनसे पूछे की वे रक्तपात की राह पर क्यूँ चल रहे हैं? जनता की तरफ से उन्हें यह सन्देश भी जरूर दे की यदि उन्हें अपनी विचारधारा पर विश्वाश है और वे सरकार से बातचीत नहीं भी करना चाहते तो सीधे जनता से बात करें. हिंसा का रास्ता छोड़ कर इलेक्शन में हिस्सा लें, जीतें, और अपनी सरकार बनायें. मीडिया केवल उनकी बात प्रसारित करने का माध्यम न बनें बल्कि उनसे दो टूक प्रश्न करने का हौसला भी रक्खे. और मीडिया यह कार्य कर सकती है.
    आपके आक्रोश का फिर भी स्वागत किया जाना चाहिए की इतने गंभीर विषय पर कम से कम विचार तो किया. पुनर्विचार भी करें. मेरी शुभकामनाएं.

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