Wednesday, June 9, 2010

वर्तमान में मिडिया की भूमिका कितनी सार्थक .........सोचिये !!

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मिडिया के द्वारा दिखाए जाने वाले ख़बरों के औचित्य के साथ ही उसकी विश्वसनीयता के सम्बन्ध में अपने विचारों को आपके तक पहुँचाने के लिए मै आज यहाँ उपस्थित हूँ !!
देश में आज जैसे न्यूज़ चैनलों की बाढ़ सी आ गयी है और दिन ब दिन इन चैनलों की विश्वसनीयता काम होती जा रही है, जिससे यह यह समाचार दिखाने के नाम पर महज खानापूर्ति करती नजर आती हैं ! आज सवाल इन सभी रास्ट्रीय न्यूज़ चैनलों की सार्थकता का है की क्या वास्तव में में यह "रास्ट्रीय चैनल" हैं ?? क्या इनके द्वारा प्रसारित समाचार वास्तव में विश्वसनीय हैं ?? प्रिंट मिडिया तो फिर भी ठीक है मगर इलेक्ट्रोनिक मिडिया पर ऐसे सवाल अधिक उठते है, इन पर विचार करना न केवल हमारा फ़र्ज़ है वरन देशहित के लिए महती आवश्यकता भी है!!
हम मिडिया के सकारात्मक प्रयासों , उनकी विश्वसनीय तथा देशहित में प्रसारित ख़बरों के लिए सदा ही उनकी प्रसंसा कर उन्हें प्रोत्साहित करते रहे हैं और आगे भी करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे, मगर आज मै देशभर के तथाकथित रास्ट्रीय चैनलों से यह पूछना चाहता हूँ क्या इन्हें दिल्ली , मुंबई , कोलकाता जैसे महानगर ही सम्पूर्ण भारत नजर आते हैं ?? क्या इन्हें भ्रामक ख़बरों को प्रसारित करने में भी कोई संकोच नहीं ?? क्या इन चैनलों के लिए छत्तीसगढ़ में 76 जवानों का नक्सली हमले में सहीद हो जाने से अधिक टेलीविजन पर प्रसारित सीरियलों के साजिश और बालीवूड की मसालेदार ख़बरें महत्वपूर्ण हैं ??
सवाल यह भी है की क्या छत्तीसगढ़ जैसे नवोदित और छोटे राज्यों की ख़बरें रास्ट्रीय चैनलों पर प्रसारण योग्य नहीं ?? क्या छोटे राज्य भारत का हिस्सा नहीं है ?? और आखिर क्यों हमारे इतने महत्वपूर्ण ख़बरों की उपेक्छा इन चैनलों द्वारा किये जाते हैं !!
क्या इन चैनलों का उद्देश्य मात्र धन कमाना है देश के हित में इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं ?? तो ऐसे हाल में हम कैसे इन्हें लोकतंत्र का स्तम्भ के रूप में हम स्वीकार करें, मै देश के कर्णधारों से भी यह अपील करता हूँ की वे इस दिशा में कोई ऐसा कदम उठायें जिससे चैनलों की व्यापकता तो बढे ही साथ ही इनकी विश्वसनीयता भी बढे और ऐसे खबर देश में प्रसारित किये जाएँ जो महत्वपूर्ण हो, जिसे प्रसारित करने से देश की विभिन्न समस्याओं के विषय में शासन प्रशासन को जानकारी मिल सके और उसका निराकरण हो, ख़बरें ऐसी हो जिसे देखकर दर्शक को सच में मिडिया के जिम्मेदारी का अहसास हो तभी मिडिया देश के लोकतान्त्रिक व्यवस्था के स्तम्भ के रूप में वास्तव में
मान्यता प्राप्त कर सके..........वन्दे मातरम !!

Wednesday, June 2, 2010

"भारतीय" होने पर सवाल क्यों ........?

वन्दे मातरम मै गौरव शर्मा "भारतीय" अपने विचारों को आप तक पहुँचाने आज फिर से हाजिर हुआ हूँ !!
आज मै किसी ज्वलंत मुद्दे पर नहीं एक आम भारतीय की हैसियत से यहाँ उपस्थित हूँ , मुझे कुछ दिनों से कुछ लोग लगातार पूछ रहे हैं की मैं अपने नाम के साथ "भारतीय" क्यों लिखता हूँ ? बस आज इस सवाल का जवाब देने आया हूँ........
हमें गर्व है की हम भारतीय हैं , हमें गर्व है की हम उस देश में जन्मे हैं जहाँ की संस्कृति और सभ्यता पुरानी है , भारत के अनेकता में एकता की शक्ति को सारे जहाँ ने पहचानी है.........!!
मेरा यह देश है अर्पण का तर्पण का और समर्पण का , जहाँ मानवता हर धर्म से ऊँचा है और भाईचारा दीखता समूचा है ............!!
भारत वह देश है मेरा जहाँ बसती है हर दिल में प्यार और अपनापन , जिस धरती के कण कण को हमने अपनी माता ही मानी है...............!!
गंगा की पवित्रता और हिमालय की विस्तृत ऊंचाई सा व्यक्तित्व और चरित्र हर भारतीय की पहचान है ,हम भारतीय हैं बस इसी बात पर तो अभिमान है .........!!
हे मेरे इश्वेर बस इतना करना तू , भले न हमको इन्सान बनाना पर हर जन्म में भारतीय बनाना , हम गर्वित हैं अपनी मातृभूमि पर की जिसने अहसान किया है हमपर , अपना आशीर्वाद दिया है , हे मातृभूमि , हे भारत माँ बस अब तू इतना ही करना जब मै मर भी जाऊ तो भी मुझसे अलग न होना...............!!



ऐ वतन , हम पर तेरा अहसान है , तुने हमें अपना कहा यही हमारी शान है .
क्यों न करें तेरी पूजा , और क्यों न मानें हम तुझे सब कुछ , तुझसे ही मिलती जग में हमें पहचान है ..............वन्दे मातरम !!

और इसलिए मै """भारतीय""" हूँ ........!!

Thursday, May 27, 2010

........छत्तीसगढ़ के संस्कृति के साथ खिलवाड़ बर्दास्त नहीं......

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से ही छत्तीसगढ़ में फिल्मों के निर्माण के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्द्योग की स्थापना हुई, और फिल्मों के बाजार में आने और उस पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का दौर प्रारंभ हुआ , मोर छईया भुइयां , जहाँ भूलो माँ बाप ला जैसी अच्छी अच्छी फ़िल्में बनी और दर्शकों के द्वारा सराही भी गयी इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की मति की सुगंध ने ही इन्हें मोहक बनाया और कुछ फिल्मों ने तो राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर अपनी जोरदार उपस्थिति भी दर्ज करायी जिससे न केवल इन फिल्मों का वरन इनके कलाकारों का इनके निर्माताओं का और इनसे जुड़े हुए सभी व्यक्तियों के साथ ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति का भी प्रचार हुआ और लोगों ने उसे पसंद किया!!
यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था मगर जैसे जैसे समय बीतता गया इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति से अधिक बाजारवाद की संस्कृति नजर आने लगी और आज यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है की छत्तीसगढ़ फिल्म निर्माण से जुड़े कुछ ऐसे लोग जिहे संस्कृति से कोई लगाव नहीं है और जिनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है , के कारण यह उद्द्योग अब अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है , छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उसके आचार विचारों को और यहाँ के महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक धरोहरों को पहचान दिलाना ही इनका मूल उद्देश्य था जो आज कहीं भी नजर नहीं आता और यह उद्द्योग भी अब दिशाहीन होता जा रहा है !! यहाँ भी वाही फूहड़ और अश्लील फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन होने लग गया है जिससे निश्चित ही हमारी संस्कृति और हमारी मति की सुगंध अब दूषित हो रही है !!
जब जब निर्माताओं ने अच्छी कहानी संवाद और अच्छी पटकथा प्रस्तुत की है फ़िल्में चली हैं और जब जब इस तरह दिशाहीन फ़िल्में बनाई गयी है उसे दर्शकों ने नाकारा ही है , इससे स्पस्ट है की दर्शक भी ऐसी फ़िल्में नहीं देखना चाहते हैं!! आज कुछ निर्माताओं ने बहार से कलाकारों को बुलाकर फिल्मों में काम दे रहे हैं वह भी कुछ हद तक सही नहीं है , जब हमारे पास बालीवुड को टक्कर देने वाले भैयालाल हेदाऊ , सुदामा शर्मा , अनुज शर्मा , प्रकाश अवस्थी, मोना सेन , ममता चंद्रक्कार जैसे अच्छे अच्छे कलाकार हैं तो हम क्यों बाहरी कलाकारों को बढ़ावा दे रहे हैं ? क्या यह हमारे योग्य कलाकारों के साथ अन्याय नहीं ? निश्चित ही जब हमारे ये प्रतिभावान कलाकार अन्य जगहों पर जाते हैं तो इन्हें काम नहीं दिया जाता है तो फिर इन के प्रदेश में अन्य लोगों को काम देने से पूर्व इन्हें महत्व देना चाहिए !! और अगर हम सच में छत्तीसगढ़ी फिल्मोदद्योग का विकास चाहते हैं तो हमें कुछ स्वार्थी लोगों को दूर कर गरीब ही सही मगर धरती से जुड़े प्रतिभावान लोगों को महत्व देना होगा , इसके साथ ही अच्छे स्तर के फिल्मों का निर्माण करना होगा जिससे हमारी संस्कृति को पहचान मिले और हमारे कलाकार भी इसके माध्यम से अपनी पहचान कायम कर सकें , निश्चित ही अश्लील और फूहड़ फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन बंद करना चाहिए और यह भी समझ लेना चाहिए की अब छत्तीसगढ़ के संस्कृति के साथ खिलवाड़ बर्दास्त नहीं किया जायेगा............

Friday, May 21, 2010

.............!!मेरे छत्तीसगढ़ का हाल..........!!

छत्तीसगढ़ की धरती का क्या कहें हम हाल ....
यहाँ तो यारों गरीब फटेहाल है और मंत्री अधिकारी मालामाल





शांति के इस टापू पर आज नक्सलवाद जा जाल है ........
जय जोहर कहने वाले कहते सलाम लाल हैं






छत्तीसगढ़ में भ्रस्टाचारी मदमस्त और आम आदमी कंगाल है ......
धन के कटोरे में ब्लेक में बिकता चावल दाल है






अभी तो पकड़ा गया सिर्फ एक बाबु - लाल है
न जाने अभी इस धरती पर और कितने बाबु - लाल हैं





आज छत्तीसगढ़ की दो करोड़ जनता पुच रही है सिर्फ एक ही सवाल
की कब यह पावन धरा बनेगा शांत समृद्ध और खुशहाल

Thursday, May 20, 2010

!! ..........प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया...........!!

नमस्कार, मै आज आपके सामने फिर से उपस्थित हूँ, मेरे द्वारा कल किखे गए ब्लॉग में सायद बड़ी ही अच्छी प्रतिक्रियाएं मुझे जानने को मिले लोगों में मुझे अपने विचारों से अवगत कराया , उसे पढ़ा , मै उन सभी का आभारी हूँ !!
मेरे कुछ आत्मीय स्वजनों ने कहा की नक्सली जनता से वोट मांगें और जनहित में सरकार में शामिल होवें , मै उनसे यह सवाल बड़ी विनम्रता के साथ करना चाहता हूँ की , अब तक नक्सली प्रशाशनिक अमलों को ही निशाना बना रहे थे , मगर अब वे आम आदिवासी और आम लोगों को निशाना बनाना प्रारंभ कर चुके हैं , इससे यह स्पस्ट होता है की वे जनहितैषी तो कतई नहीं हैं!!
मै ऐसे लोगों सिर्फ यही पूछना चाहता हूँ की क्या ऐसे लोग जिनके हाथ निर्दोषों के खून से रंगे हैं , जो वर्षों से सिर्फ हत्या, लूटपाट और केवल असामाजिक घटनाओं को अंजाम देते आ रहे हैं , जिनका मानवता और इंसानियत से कोई सरोकार नहीं है , जिनके लिए किसी के जीवन का कोई मोल नहीं है , क्या उनके हाथ में सरकार का जाना उचित होगा ? क्या हत्यारों को ही देश का कर्णधार बनाना उचित होगा ? क्या वो माँ जिसने अपने बेटे को इनके द्वारा खोया है वो इन्हें माफ़ कर स्वीकार करेगी ? क्या वह पत्नी जिसका सुहाग इन्होने लुटा है वो इन्हें स्वीकार करेगी ? वे मासूम बच्चे जिनके सर से पिता का हाथ उठ गया सिर्फ इन नक्सलियों के द्वारा क्या वे इन्हें माफ़ करेंगे ? क्या उन सहिदों की आत्मा उन्हें माफ़ कर देश के कर्णधारों के रूप में माफ़ कर पायेगी ?
जवाब सिर्फ एक है नहीं , नहीं और केवल नहीं हम उन निर्मम मौत के सौदागरों को कभी माफ़ नहीं कर सकते !! इन नक्सलियों की तुलना यही लोग आतंकवादियों से करते हैं तो क्या ये लोग आतंकवादियों को देश की सरकार चलने की अनुमति देने को तैयार हैं ?
नक्सलवादियों का इस प्रदेश से ही नहीं वरन इस तथाकथित मानसिकता या विचारधारा का अंत कर इसका संहार करना ही इससे पूर्ण रूप से हमें मुक्ति दिला सकता है , हाँ उससे कैसे निपटा जाये यह अवश्य बहस का मुद्दा हो सकता है , मै सरकार के नुमाईन्दों से भी यह अपील करना चाहता हूँ की अपनी रणनीति को लापरवाही पूर्वक मिडिया को परोसने की गलती न करें , आप {सरकार} तो अपनी रणनीति को अंजाम दे नहीं पाते हैं, और नक्सली आपकी रणनीति से भी बेहतर रणनीति तैयार कर उसे ध्वस्त कर देते हैं !! यहाँ यह भी गौरतलब है की शाशन का खुफियातंत्र किस स्टार तक लोगों की मानसिकता को जनता है या उसे इसकी जानकारी है , हमारा खुफियातंत्र तो हवाहवाई तरीके से कार्य करता है मगर नक्सलियों का सुचना और प्रचार तंत्र हमारे सरकार से भी तेज और आम जन तक पकड़ रखने वाला सिद्ध होता है , निश्चित ही शासन को अपने सुचना तंत्रों में कसावट की भी आवश्यकता है!!
मै शायद विषय से थोडा दूर चला गया था माफ़ी चाहूँगा , मै सिर्फ यही कहना चाहता हूँ की हम उन हिंसा और आतंक के पुजारी नक्सलियों को अहिंसा और शांति के संवाहक महात्मा गाँधी के देश को चलने की अनुमति कतई नहीं दे सकते ऐसा सोचना भी हमारे सहीद जवानों एवं मरे गए लोगों के प्रति अन्याय होगा , कल मेरी लिखित बातों से निश्चित ही बहुत से लोगों को पीड़ा हुई है मै उनसे सादर छमा प्रार्थी हूँ , मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना नहीं वरन देश के जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से देश में शांति स्थापित करने में अपना सकारात्मक योगदान देना है !! मै पुनः उन शहीदों एवं मरे गए लोगों को अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ .........

Wednesday, May 19, 2010

क्या नक्सलवाद के लिए मिडिया जिम्मेदार नहीं ? सोचिये !!

आज मै लिखना चाहता हूँ मिडिया और नक्सलवाद के परस्पर सम्बन्ध पर, ऐसा क्यों होता है की मिडिया के माध्यम से हमारी सरकार के द्वारा नक्सलियों के खिलाफ किये जाने वाके समस्त कार्यवाहियों की जानकारी नक्सलियों तक तो जरुर पहुच जाती है मगर वाही मिडिया वाले जो हमारी खबर नक्क्सलियों तक पहुंचाते हैं वे क्यों उनकी स्थिति और उनके सम्बन्ध में अन्य जानकारियां सरकार को या आमजनों को नहीं देते हैं ??
क्या ऐसा करके मिडिया वाले ये बताना चाहते हैं की उनकी पकड़ नक्सलियों तक भी है या वे ये बताना चाहते है की जिस नक्सली प्रभावित जगहों में पुलिस नहीं पहुँच सकती वहां हम मिडिया वाले पहुँच सकते हैं !! आखिर साबित क्या करना चाहते हैं हैं ये मिडिया वाले नक्सली का interview दिखाकर ? क्या वे ऐसा करके कहीं न कहीं उनका हौसला बढाकर या उनकी बातों को समूचे देश में प्रसारित कर वे उन्हें प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं ??
मुझे यह कहने में किसिस प्रकार का कोई संकोच नहीं है की इस मामले में मिडिया का भी उतना ही उत्तरदायित्व है जितना सरकार और अन्य सभी प्रसासनिक अम्लों का है !! मगर आज मिडिया के लोग गाहे बगाहे मिडिया के समर्थक बनते जा रहे हैं , हाँ जो मिडिया नक्सलियों के निति और उनके बातों को समूचे देश में प्रसारित कर रहा है वह निश्चित ही नक्सल समर्थक है !! क्या मिडिया की यही जिम्मेदारी है? क्या देश के चौथे स्तम्भ की यही जिम्मेदारी है ?
मै यह भी बताने में संकोच नहीं करूँगा की जब दंतेवाडा में 70 से अधिक जवान मरे गए और अभी हाल में ही जब पुनः नक्सलियों ने बस को उड़ा दिया ऐसे अवसर पर भी तथाकथित रास्ट्रीय न्यूज़ चैनलों द्वारा इन ख़बरों को महत्व न देकर अन्य फालतू ख़बरों को ही प्रसारित किया जाता रहा , खबरों में सिर्फ महानगरों की चोरी , अभिनेताओं के नखरे , खेल जगत में भारत की नाकामी को ही दिखाया जाता रहा , क्या हमारे जवान ओं का मारा जाना कोई खबर नहीं ? क्या हमारे पचास से भी अधिक लोगों का मारा भी जाना कोई खबर नहीं ? आखिर क्यों मिडिया वाले इन ख़बरों की उपेक्छा कर अनावश्यक खबर दीखते हैं ? क्या उनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना ही रह गया है , देश की सेवा नहीं ?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कहीं न कहीं मिडिया के नकारात्मक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं , आज समय आ गया है की अब मिडिया की स्वतंत्रता पर सकारात्मक अंकुश लगाया जाये ताकि देश में देशहित से जुड़े आवश्यक खबर ही प्रसारित हो किसी आतंकी का interviwe नहीं , और ऐसे खबर प्रसारित हों जिससे लोगों को देशभक्त बनने की प्रेरणा मिले आतंकवादी या नक्सली बनने की नहीं , मै देश के कर्णधारों से अपील करता हूँ की ये अब वोटों की राजनीती और मिडिया के दुरूपयोग को बंद कर देश को सकारात्मक दिशा प्रदान करें , अंत में मै सभी मरे जाने वालों को अपनी ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ...............

Tuesday, May 18, 2010

.................... हिन्दी है हम वतन है .............

माना की आज हम सारे संसार पर छा रहे है ,हर जगह अपना परचम लहरा रहे है,लेकीन हमारी मात्र भाषा को अपनाने से क्यों कतरा रहे है ?माना की प्रगती के लीये अंग्रेजी जरुरी है लेकीन अपने ही देश में हमारी ही भाषा की ये दुर्गती क्यों है ??? हर देश की पहचान उसकी संस्कृती और भाषा से होती है अगर हम ही इसकी उपेक्षा करेंगे तो शायद आने वाला पल हमे भारतीय नहीं कुछ और ही कहेगा ये हमारा एक प्रयाश है हमारी भाषा को फीर से जीवंत करने का ये हमारा एक प्रयाश है हमारे वतन को फीर से भारत बनाने का मेरा सबसे अनुरोध है अपना कुछ कीमती वक़्त हमारी भाषा के नाम करे मुझे आप सबके सहयोग की जरुरत है आईये ताकी फीर से हम वो गीत गुनगुना सके हिन्दी है हम वतन है ........................... जय हिन्द जय भारत