नमस्कार, मै आज आपके सामने फिर से उपस्थित हूँ, मेरे द्वारा कल किखे गए ब्लॉग में सायद बड़ी ही अच्छी प्रतिक्रियाएं मुझे जानने को मिले लोगों में मुझे अपने विचारों से अवगत कराया , उसे पढ़ा , मै उन सभी का आभारी हूँ !!
मेरे कुछ आत्मीय स्वजनों ने कहा की नक्सली जनता से वोट मांगें और जनहित में सरकार में शामिल होवें , मै उनसे यह सवाल बड़ी विनम्रता के साथ करना चाहता हूँ की , अब तक नक्सली प्रशाशनिक अमलों को ही निशाना बना रहे थे , मगर अब वे आम आदिवासी और आम लोगों को निशाना बनाना प्रारंभ कर चुके हैं , इससे यह स्पस्ट होता है की वे जनहितैषी तो कतई नहीं हैं!!
मै ऐसे लोगों सिर्फ यही पूछना चाहता हूँ की क्या ऐसे लोग जिनके हाथ निर्दोषों के खून से रंगे हैं , जो वर्षों से सिर्फ हत्या, लूटपाट और केवल असामाजिक घटनाओं को अंजाम देते आ रहे हैं , जिनका मानवता और इंसानियत से कोई सरोकार नहीं है , जिनके लिए किसी के जीवन का कोई मोल नहीं है , क्या उनके हाथ में सरकार का जाना उचित होगा ? क्या हत्यारों को ही देश का कर्णधार बनाना उचित होगा ? क्या वो माँ जिसने अपने बेटे को इनके द्वारा खोया है वो इन्हें माफ़ कर स्वीकार करेगी ? क्या वह पत्नी जिसका सुहाग इन्होने लुटा है वो इन्हें स्वीकार करेगी ? वे मासूम बच्चे जिनके सर से पिता का हाथ उठ गया सिर्फ इन नक्सलियों के द्वारा क्या वे इन्हें माफ़ करेंगे ? क्या उन सहिदों की आत्मा उन्हें माफ़ कर देश के कर्णधारों के रूप में माफ़ कर पायेगी ?
जवाब सिर्फ एक है नहीं , नहीं और केवल नहीं हम उन निर्मम मौत के सौदागरों को कभी माफ़ नहीं कर सकते !! इन नक्सलियों की तुलना यही लोग आतंकवादियों से करते हैं तो क्या ये लोग आतंकवादियों को देश की सरकार चलने की अनुमति देने को तैयार हैं ?
नक्सलवादियों का इस प्रदेश से ही नहीं वरन इस तथाकथित मानसिकता या विचारधारा का अंत कर इसका संहार करना ही इससे पूर्ण रूप से हमें मुक्ति दिला सकता है , हाँ उससे कैसे निपटा जाये यह अवश्य बहस का मुद्दा हो सकता है , मै सरकार के नुमाईन्दों से भी यह अपील करना चाहता हूँ की अपनी रणनीति को लापरवाही पूर्वक मिडिया को परोसने की गलती न करें , आप {सरकार} तो अपनी रणनीति को अंजाम दे नहीं पाते हैं, और नक्सली आपकी रणनीति से भी बेहतर रणनीति तैयार कर उसे ध्वस्त कर देते हैं !! यहाँ यह भी गौरतलब है की शाशन का खुफियातंत्र किस स्टार तक लोगों की मानसिकता को जनता है या उसे इसकी जानकारी है , हमारा खुफियातंत्र तो हवाहवाई तरीके से कार्य करता है मगर नक्सलियों का सुचना और प्रचार तंत्र हमारे सरकार से भी तेज और आम जन तक पकड़ रखने वाला सिद्ध होता है , निश्चित ही शासन को अपने सुचना तंत्रों में कसावट की भी आवश्यकता है!!
मै शायद विषय से थोडा दूर चला गया था माफ़ी चाहूँगा , मै सिर्फ यही कहना चाहता हूँ की हम उन हिंसा और आतंक के पुजारी नक्सलियों को अहिंसा और शांति के संवाहक महात्मा गाँधी के देश को चलने की अनुमति कतई नहीं दे सकते ऐसा सोचना भी हमारे सहीद जवानों एवं मरे गए लोगों के प्रति अन्याय होगा , कल मेरी लिखित बातों से निश्चित ही बहुत से लोगों को पीड़ा हुई है मै उनसे सादर छमा प्रार्थी हूँ , मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना नहीं वरन देश के जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से देश में शांति स्थापित करने में अपना सकारात्मक योगदान देना है !! मै पुनः उन शहीदों एवं मरे गए लोगों को अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ .........
Thursday, May 20, 2010
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आपका कहना बिलकुल सच है भैया , ऐसे लोग जिन्हें किसी के जान की कोई कीमत नहीं वास्तव में हम कैसे उनपर भरोसा कर सकते हैं , भक्छक को ही रक्छक बना देना किसी प्रकार की बुद्धिमानी नहीं होगी , मै आपके इस साहसिक विचार का पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ ...........
ReplyDeleteगौरव , आपका लेखन स्वागतयोग्य है , और आपने जिस तरह से नक्सलियों को प्रस्तुत लिया है वह भी प्रसंसनीय है , भविष्य के लिए आपको मेरी बधाई!!
ReplyDeleteवाह प्रतिक्रिया पर आपने जो प्रतिक्रिया दी है भैया, वो भी बड़ी अच्छी है पुनः हमारा बधाई स्वीकार करें ..!
ReplyDeleteगौरव जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
एकदम सही प्रतिक्रिया आपने दी है इस बार. हिन्दुस्तान अपने युवाओं से उसी जोश और आत्मविश्वास की अपेक्षा रखता है जिसका मानदंड भगतसिंग, राजगुरू, सुखदेव ने अपने प्राणों की आहुति देकर सुनिश्चित किया हुआ है. और आपकी बातों में जोश का वही इस्तर महसूस हो रहा है. हिन्दुस्तान ने कभी हिंसा के आगे घुटने नहीं टेका है न ऐसा कभी हो सकता है. हिन्दुस्तान से मेरा तात्पर्य यहाँ पर हिन्दुस्तान की रिस्पेक्टेड आवाम से है न की आतंक के खिलाफ सिर्फ बातें करने वाली सरकार से. और आप गौर करेंगे तो पूर्व कथित मेरी बातें आपको अपने विचारों की ही परछाई नज़र आयेंगी. चूँकि सरकार का निर्माण शत प्रतिशत जनता के माध्यम से होता है इसलिए किसी को इलेक्शन में शामिल होने का न्यौता देने का अर्थ उसे जनता की कसौटी पर उतातना होता है, न की प्रशाशन सौंपना. हाँ यह बात और है की कहीं कहीं इस जुमले का प्रयोग राजनीतिक इस्तर पर वाक्चातुर्य के मद्देनज़र भी किया जाता है.
इससे सम्बंधित अपनी पूर्व प्रतिक्रिया में मेरा आशय मीडिया की सकारात्मक शक्तियों रेखांकित करना था और उसी सन्दर्भ में तथ्यों को प्रयुक्त किया गया था, अन्यथा कौन व्यक्ति यह बात नहीं समझता की जो लोग छुप कर प्रहार करते हैं, जो लोग इंसानियत का लहू बगाते घूम रहें हैं वे अपने भीतर कभी भी जनता का सामना करने की हिम्मत पैदा नहीं कर सकते. अपनी विचारधारा को पैनी करते रहने हेतु मेरी शुभकामनाएं.